वेटरन अभिनेत्री नंदा की आज 81वीं बर्थ एनिवर्सरी है। 8 जनवरी 1939 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में जन्मीं अभिनेत्री आज हमारे बीच में नहीं हैं। 75 साल की उम्र में 25 मार्च 2014 को मुंबई में उनका निधन हो गया, लेकिन आज भी उनकी यादें लोगों के जेहन में जिंदा हैं। उनका पूरा नाम नंदा कर्नाटकी था।
उन्हें जितना प्यार बॉलीवुड से था, उससे ज्यादा वे आजाद हिंद फौज और नेताजी सुभाषचंद्र बोस को चाहती थीं। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वे बचपन से आजाद हिंद फौज में जाना चाहती थीं और देश की आजादी के लिए जंग लड़ना चाहती थीं। लेकिन, किस्मत उन्हें कोल्हापुर से मायानगरी ले आई। नंदा ने बॉलीवुड की 70 से ज्यादा फिल्मों में काम किया।
साल 1972 में आई मनोज कुमार की फिल्म ‘शोर’ बतौर अभिनेत्री नंदा की अंतिम हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्होंने मनोज कुमार की पत्नी की भूमिका निभाई, जो अपने बच्चे को ट्रेन से बचाते समय अपनी जान से हाथ धो बैठती है। इस फिल्म में अपनी छोटी सी भूमिका में नंदा ने सिने दर्शकों का मन मोह लिया था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित थीं नंदा
नंदा के घर में फिल्मी माहौल था। उनके पिता मास्टर विनायक मराठी रंगमंच के जाने-माने हास्य कलाकार थे। इसके अलावा उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण भी किया था। नंदा के पिता चाहते थे कि वह अभिनेत्री बनें, लेकिन इसके बावजूद नंदा की अभिनय में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। नंदा महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस से काफी प्रभावित थीं। उनकी ही तरह सेना से जुड़कर देश की सेवा करना चाहती थीं।
मां के समझाने पर नंदा ने कटवाए थे बाल
नंदा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वह पढ़ाई में व्यस्त थीं, तब उनकी मां ने उनके पास आकर कहा, 'तुम्हें अपने बाल कटवाने होंगे, क्योंकि तुम्हारे पापा चाहते हैं कि तुम उनकी फिल्म में लड़के का किरदार निभाओ।' मां की इस बात को सुनकर नंदा को काफी गुस्सा आया। पहले तो उन्होंने बाल कटवाने से साफ तौर से मना कर दिया, लेकिन मां के समझाने पर वह इस बात के लिए तैयार हो गईं। फिल्म के निर्माण के दौरान नंदा के सिर से पिता का साया उठ गया, साथ ही फिल्म भी अधूरी रह गई। धीरे-धीरे परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। उनके घर की स्थिति इतनी खराब हो गई कि उन्हें अपना बंगला और कार बेचने के लिए विवश होना पड़ा।
बढ़ती उम्र के साथ फिल्मों में काम करना किया कम
'शोर' फिल्म में काम करने के बाद अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए नंदा ने फिल्मों में काम करना कुछ कम कर दिया। इस दौरान उनकी 'परिणीता', 'प्रायश्चित', 'कौन कातिल', 'असलियत' और 'नया नशा' जैसी फिल्में आईं, लेकिन ये सभी फ्लॉप रहीं। लगातार फिल्मों की असफलता को देखते हुए नंदा ने फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया।
साल 1981 में नंदा ने फिर की बॉलीवुड में वापसी
साल 1981 में नंदा ने ‘आहिस्ता आहिस्ता’ से बतौर चरित्र अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में दोबारा वापसी की। इस फिल्म के बाद उन्होंने राजकपूर की फिल्म ‘प्रेमरोग’ और ‘मजदूर’ में अभिनय किया। इन तीनों फिल्मों मे नंदा ने पदमिनी कोल्हापुरे की मां का किरदार निभाया था।
कभी नहीं मिला बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड
नंदा ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में कई फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीता, लेकिन किसी भी फिल्म में बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड नहीं जीत पाईं। 1960 में आई ‘आंचल’ के लिए बेस्ट स्पोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड उन्हें दिया गया था। वह फिल्म ‘भाभी’ (1957), ‘आहिस्ता आहिस्ता’ (1981) और ‘प्रेमरोग’ (1982) के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री और ‘इत्तेफाक’ 1969 के सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार के लिए नॉमिनेट की गईं थी।
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