Friday, November 27, 2020

लताजी ने शेयर की जहर दिए जाने की घटना, बोलीं- 3 महीने बिस्तर पर रही, अपने दम पर चल भी नहीं सकती थी

स्वर कोकिला लता मंगेशकर के बारे में कहा जाता है कि जब वे 33 साल की थीं, तब किसी ने उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की थी। अब खुद लता मंगेशकर ने इस कहानी के पीछे से पर्दा हटाया है। उन्होंने एक बातचीत में कहा, "हम मंगेशकर्स इस बारे में बात नहीं करते। क्योंकि यह हमारी जिंदगी का सबसे भयानक दौर था। साल था 1963। मुझे इतनी कमजोरी महसूस होने लगी कि मैं बेड से भी बमुश्किल उठ पाती थी। हालात ये हो गए कि मैं अपने दम पर चल फिर भी नहीं सकती थी।"

डॉक्टर्स ने कभी गाने पर संदेह नहीं जताया

बॉलीवुड हंगामा की रिपोर्ट के मुताबिक, जब लताजी से पूछा गया क्या यह सच है कि डॉक्टर्स ने उन्हें कह दिया था कि वे फिर कभी नहीं गा पाएंगी? तो जवाब में उन्होंने कहा, "यह सही नहीं है। यह मेरे धीमे जहर के इर्द-गिर्द बुनी गई एक काल्पनिक कहानी है। डॉक्टर ने मुझे नहीं कहा था कि मैं कभी नहीं गा पाऊंगी। मुझे ठीक करने वाले हमारे फैमिली डॉक्टर आर. पी कपूर ने तो मुझसे यह तक कहा था कि वे मुझे खड़ी करके रहेंगे। लेकिन मैं साफ कर देना चाहती हूं कि पिछले कुछ सालों में यह गलतफहमी हुई है। मैंने अपनी आवाज नहीं खोई थी।"

तीन महीने तक बेड पर रही थीं लताजी

लताजी की मानें तो डॉ. कपूर के इलाज के बाद वे धीरे-धीरे ठीक हुईं। वे कहती हैं, "इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि मुझे धीमा जहर दिया गया था। डॉ. कपूर का ट्रीटमेंट और मेरा दृढ़ संकल्प मुझे वापस ले आया। तीन महीने तक बेड पर रहने के बाद मैं फिर से रिकॉर्ड करने लायक हो गई थी।"

हेमंत कुमार रिकॉर्डिंग पर लाए थे

ठीक होने के बाद लताजी का पहला गाना 'कहीं दीप जले कहीं दिल' हेमंत कुमार ने कंपोज किया था। लताजी बताती हैं, "हेमंत दा घर आए और मेरी मां की इजाजत लेकर मुझे रिकॉर्डिंग के लिए ले गए। उन्होंने मां से वादा किया कि किसी भी तरह के तनाव के लक्षण दिखने के बाद वे तुरंत मुझे घर वापस ले आएंगे। किस्मत से रिकॉर्डिंग अच्छे से हो गई। मैंने अपनी आवाज नहीं खोई थी।" लताजी के इस गाने ने फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था।

रिकवरी में मजरूह साहब का अहम रोल

लता मंगेशकर की मानें तो उनकी रिकवरी में मजरूह सुल्तानपुरी की अहम भूमिका है। वे बताती हैं, "मजरूह साहब हर शाम घर आते और मेरे बगल में बैठकर कविताएं सुनाकर मेरा दिल बहलाया करते थे। वे दिन-रात व्यस्त रहते थे और उन्हें मुश्किल से सोने के लिए कुछ वक्त मिलता था। लेकिन मेरी बीमारी के दौरान वे हर दिन आते थे। यहां तक कि मेरे लिए डिनर में बना सिंपल खाना खाते थे और मुझे कंपनी देते थे। अगर मजरूह साहब न होते तो मैं उस मुश्किल वक्त से उबरने में सक्षम न हो पाती।"

जहर देने वाले का पता चल गया था

जब लताजी से पूछा गया कि कभी इस बात का पता चला कि उन्हें जहर किसने दिया था? तो उन्होंने जवाब में कहा, "जी हां, मुझे पता चल गया था। लेकिन हमने कोई एक्शन नहीं लिया। क्योंकि हमारे पास उस इंसान के खिलाफ कोई सबूत नहीं था।"



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Lata Mangeshkar reveals the truth behind her slow poisoning first time


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