अमित कर्ण, मुंबई.अर्जुन कपूर अपने करियर की पहली हिस्टॉरिकल जॉनर की फिल्म कर रहे हैं। उसका नाम ‘पानीपत’ है। वह पानीपत की तीसरी लड़ाई पर बेस्ड है। कहानी के लिए तीसरी लड़ाई ही क्यों चुनी गई, उसका लेखा-जोखा मेकर आशुतोष गोवारिकर ने पेश किया। उन्होंने कहा,’ पानीपत की पहली लड़ाई में मेरी कोई दिलचस्पी थी नहीं। दूसरी मैंने ‘जोधा अकबर’ में दिखा दी थी। तीसरी के बारे में मैंने बचपन से सुना था, पढ़ा था और पता था।
आशुतोष ने कहा- चूंकि यह वाली जंग अहमद शाह अब्दाली से हम हार गए थे तो शुरूआत के दिनों में मुझे इसमें इंटरेस्ट नहीं था। मगर फिल्मकार बनने के बाद इस बारे में मेरा इंटरेस्ट इसमें बढ़ा। मैं सोचता रहा कि पानीपत की तीसरी लड़ाई पर फिल्म कैसे बन सकती है। काफी मनन चिंतन के बाद महसूस हुआ कि इस लड़ाई में शौर्य की बात थी। दुनिया के किसी भी जंग के इतिहास में पहली बार हुआ कि 1000 सेना आक्रमणकारी को रोकने के लिए उत्तर की ओर गई है। साथ ही ऐसे क्या कारण थे, जो यह जंग हुई है।
दिलचस्प बात यह थी कि वह1000 सेना जंग लड़ने के लिए उत्तर यानी दिल्ली की ओर नहीं जा रहे थे। वे जा रहे थे आक्रमणकारी को रोकने दिल्ली की तरफ। फिर यमुना के ईद-गिर्द दोनों पक्षों की लुका-छिपी हुई। फाइनली पानीपत के मैदान में दोनों की भिड़ंत हुई। वहां परसेना की तादाद बढ़कर 50 हजार हुई। अब्दाली दूसरी तरफ एक लाख की सेना के साथ आया था। इन तथ्यों को लेकर हमारे को प्रोड्यूसर रोहित शेलाटकर भी काफी रोमांचित थे। उनके मन में यह सब काफी सालों से था। तो ‘मोहनजो दाड़ो’ के बाद हम मिले तो ‘पानीपत’ की बुनियाद रखी गई।
फिल्म की तैयारी में सारे मेन लीड ने छह महीने तलवारबाजी, घुड़सवारी वगैरह सीखने में दिए हैं। सबके मुंडन तक करवाए हैं। अर्जुन और कृति सैनन केमराठी डिक्शन के लिए कोच रखे गए। अर्जुन और संजय दत्त ने 20-25 किलो के जिरहबख्तर पहन एक्शन किए हैं। दोनों को हालांकि उतना वजनी कॉस्ट्यूम पहन शॉट देने में बड़ी तकलीफ होती थी। हर शॉट के कट होने के बाद दोनों अपने-अपने जिरह बख्तरनिकाल लिया करते थे। ज्यादा देर पहनकर वे खड़े और बैठ भी नहीं सकते थे। अच्छा सबसे ज्यादा तकलीफ घोड़ों को होती थी। वह इसलिए कि जिरहबख्तर पहने कलाकारों का और ज्यादा वजन बढ़ा हुआ रहता था। संजय का तो 25 किलो का था। हालांकि इस तरह की हिस्टॉरिकल फिल्मों में यह सब होता ही है। अर्जुन नेजो आर्मर पहना है उसे हजार चिल्तामाशा कहते हैं। वह इसलिए कि उसमें हजार छोटी कीलें होती हैं।
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