बॉलीवुड डेस्क.150 सौ ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके 70 वर्ष के बौने कलाकार नत्थूदादा का शुक्रवार तड़के छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव के पास अपने गांव रामपुर में निधन हो गया। राजकपूर के साथ 'मेरा नाम जोकर' से फिल्मी करिअर शुरू करने वाले दो फुट के नत्थूदादा कई महीनों से बीमार थे। उनका पूरा नाम नत्थू रामटेके था और वे बदहाली में पत्नी के सहारे जिंदगी बिता रहे थे। उन्होंने मेरा नाम जोकर के अलावा शक्ति, राम बलराम, उड़नछू, खोटे सिक्के, टैक्सी चोर, अनजाने जैसी फिल्मों में काम किया था।
दिसंबर की शुरुआत में उन्हें बुखार हुआ था और उसके बाद उन्होंने सरकार तक अपनी पीड़ा पहुंचाई थी। उन्होंने सरकार से आर्थिक मदद और नौकरी की मांग की थी। नत्थू दादा ने यह भी कहा था कि अगर सरकार उन्हें कोई मदद नहीं दे पाएगी तो फिर उनके सामने परिवार के साथ सामूहिक आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ेगा।
घर में शौचालय तक नहीं, बच्चों की पढ़ाई भी छूटी
मुम्बई की चमक-दमक से बहुत दूर बुढ़ापे में वे अपने गांव में ही रहे। आठ साल तक चपरासी के रूप में काम करने वाली पत्नी चंद्रकला की नौकरी छूट जाने के बाद वे बेहद टूट गए थे। तंगी के कारण बच्चों की पढ़ाई छूट गई और खाना भी दूभर हो गया था। पत्नी की नौकरी के लिए वे सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे थे। उनके घर में शौचालय तक नहीं है और सरकारी दफ्तरों में उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह से उनकी अच्छी पहचान थी लेकिन उनके आश्वासनोंके बाद भी नत्थू दादा को कोई मदद नहीं मिल सकी।
1982 में जख्मी होने के बाद मुम्बई नहीं लौटे
नत्थू दादा ने बताया था कि 1982 में आई फिल्म धर्मकांटा के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लगनेके कारणवे बुरी तरह घायल हो गए थे। फिल्म के एक सीन में अमजद खान को उन्हें फेंकना था और दूसरे कलाकार को पकडऩा था लेकिन वे ऊंचाई से गिर गए और जख्मी हो गए। इसके बाद वे वापस अपने गांव आ गए। दोबारा मुंबई जाने की कोशिश की लेकिन घर वालों ने नहीं जाने दिया और शादी करा दी। नत्थू दादा ने अपने संरक्षक रहे दारा सिंह के साथ तीन फिल्मों में काम किया है। मेरा नाम जोकर के अलावा दूसरी फिल्म पंजाबी में बनी दुख भंजन तेरा नाम और तीसरी का नाम अब नत्थू दादा को याद नहीं है।
दारा सिंह ने एक हाथ में उठा लिया था नत्थू दादा को
बात 1969 की है, तब भिलाई में फ्री स्टाइल कुश्ती में नत्थू दादा अपने साथी के कहने पर दारा सिंह को देखने गए थे। विपक्षी पहलवान को हराने के बाद दारा सिंह लोगों से हाथ मिलाने लगे। तभी उनकी नजर नत्थू दादा पर पड़ी। उन्होंने नत्थू को एक हाथ से उठा लिया। उनका एक हाथ दर्शकों का अभिवादन स्वीकारते हुए हवा में लहरा रहा था तो दूसरे पर नत्थू दादा लटके हुए थे। नत्थू दादा की सांसें अटकी हुई थीं कि कहीं दारा सिंह उन्हें हवा में न उछाल दें पर हिंदी फिल्मों के पहले एक्शन हीरो ने उन्हें गले से लगा लिया। दारा सिंह ने नत्थू को अपने साथ मुंबई चलने को कहा वे तुरंत तैयार हो गए। अगली सुबह वे दारा सिंह के बांद्रा वाले घर में थे।
राजकपूर से मुलाकात , मेरा नाम जोकर में काम मिला
मुंबई पहुंचने के दो दिनों बाद दारा सिंह ने नत्थू दादा को शो मैन राज कपूर से मिलवाया। राजकपूर मेरा नाम जोकर बनाने की योजना बनाने में लगे थे। नत्थू दादा को देखकर वे खुश हो गए क्योंकि फिल्म में उन्हें छोटे कद के आदमी की जरूरत थी। नत्थू दादा की किस्मत खुल गई अब वे दारा सिंह के घर से राज कपूर के चेंबूर वाले बंगले के मेहमान हो गए। इस तरह मेरा नाम जोकर नत्थू दादा की पहली फिल्म रही जिसमें उन्हें छोटा जोकर बनाया गया था। इसके बाद दादा ने राजकपूर की पांच फिल्मों में जोकर कर रोल अदा किया।
दारा सिंह ने जोड़ा था नत्थू के आगे दादा
मेरा नाम जोकर की शूटिंग के दौरान दारा सिंह ने उनके नाम के आगे दादा जोड़ा। नत्थू दादा बताते हैं कि दारा सिंह खुशमिजाज थे। हमेशा हंसते रहते थे। जब वे उनके घर पर रुके तो उन्हें कहीं से नहीं लगा कि किसी स्टार के घर पर हैं। दारा सिंह का तब बालीवुड में खासा रुतबा था। उनके साथ हमेशा दो व्यक्ति चलते थे जो काजू- किशमिश और बादाम का पैकेट लिए रहते थे। दारा सिंह हर आधे घंटे में उन पैकेटों से काजू-किशमिश निकालकर खाते थे।
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