बॉलीवुड के वरिष्ठ गीतकार कवि योगेश गौर जी ने शुक्रवार को मुंबई में आखिरी सांसे ली हैं। सिंगर अनू मलिक योगेश गौर जी के प्रशंसक रहे हैं। ऐसे में उनके गुजर जाने पर अनु मलिक ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान उनसे जुड़े किस्से शेयर किए हैं।
उनके गाने सुनकर गुजरा है बचपन
मैंने उनके साथ साल 2003 में आई 'शी..ईई' में काम किया था। बाकी गीत संगीत प्रेमियों की तरह उनके लिखे गाने 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए' और 'जिंदगी कैसी है पहेली हाय' सुनते हुए मेरा बचपन गुजरा था। उनसे हुई मुलाकातों में हमेशा सलिल चौधरी और मन्ना डे की बातें हुआ करती थीं। योगेश जी बताया करते थे कि सलिल चौधरी बड़े गंभीर किस्म के संगीतकार थे। ह्रषिकेश दा के साथ उनकी काफी छनती थी। योगेश जी बड़े क्लोज किस्म के आदमी थे ज्यादा अपना बखान नहीं करते थे।
उनके चेहरे पर प्यारी मुस्कुराहट रहती थी
हम लोग 10 बात बोलते तो वह एक बात बोल पूरे मामले को समाप्त करते थे। एक प्यारी सी मुस्कुराहट होती थी। उनके चेहरे पर कोई भी बात करते हुए। जो बात मेरे पिता ने कही थी वही बात हुबहू उन्होंने दोहराई थी कि यार अनु तुम बड़े सुरीले हो और पेटी (हारमोनियम) पर जब तुम्हारा हाथ होता है तो और सुर गहरे हो जाते हैं। गाना सुनते ही दिल धड़कने लगता है। इतना बड़ा कॉम्पलीमेंट उन्होंने दे दिया था। उन्होंने भविष्यवाणी कर दी थी कि अनु तुम्हें ढेर सारे अवार्ड मिलने वाले हैं। मेरे पिताजी के भी काम को बहुत ज्यादा पसंद करते थे मुझे कहा करते थे कि गीत संगीत तो आपको विरासत में मिला है और उसे बखूबी ऊंचा मुकाम दिया भी है।
हर सिचुएशन में लिख देते थे गाने
उन्हें कोई भी इस सिचुएशन दे दो। वह उसके हिसाब से गाने लिख ही देते थे। सलिल दा के बारे में वह काफी बातें किया करते थे सलिल दा को वह परफेक्शन वाले म्यूजिशियन मानते थे। गाने भी बनाते थे और बैकग्राउंड स्कोर को भी तैयार करते थे। ह्रषिकेश दा के बारे में कहा करते थे कि वह कहानी बड़े अच्छे अंदाज से सुनाते थे कि गीतकार अच्छा गाना लिखने को प्रेरित हो जाए।
पुराने दौर के संगीतकारों के साथ करना था काम
साल 2000 में मेरा महबूब स्टूडियो आना जाना लगा रहता था। उन्हीं दिनों में उनसे मुलाकात हुई थी। उन्होंने मेरी हौसला अफजाई करते हुए कहा भी था कि हमें साथ काम करना चाहिए। वह अमूमन काम नहीं मांगते थे। पहली मुलाकात में फिर मैंने उन्हें खड़े खड़े 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए' सुना दिया था। मैं पुराने दौर के भी संगीतकारों के साथ काम करना चाहता था। मैंने किया भी है कवि नीरज जी ने मेरे लिए गाना लिखा था ' कोई आए तो ले जाए'। वह घातक फिल्म का था। मैं योगेश जी के साथ भी काम करने के लिए काफी उत्सुक था जानना चाहता था कि यह लोग कैसे काम करते हैं। उनके साथ काम कर बड़ा मजा और सुकून आया।
उनमें एक नफासत सी थी। हाइजीन के मामले में सफाई पसंद थे। जब कभी बड़े गीत संगीतकार का लोग मेरे सामने नाम लेते तो मैं बड़े अदब से अपने दोनों कानों को अपने हाथ से छुआ करता हूं। यह आदत उन्हें बहुत पसंद थी मेरी। कहते थे कि बड़ों का सम्मान करना बड़ी बात है। अच्छी आदत है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2XfgrgB
No comments:
Post a Comment