बॉलीवुड डेस्क.29 सितम्बर 1932 को जन्मे मेहमूद की आज 87वीं बर्थ एनिवर्सरी है।हास्य अभिनेता जॉनी लीवर और जूनियर मेहमूद, महमूद साहब को अपनी प्रेरणा मानते हैं
प्रसिद्ध कॉमेडियन्स नेमहमूद के जन्मदिन पर उनकी यादों को ताजा किया।
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वह इतने बड़े.. उनकी बड़ी हस्ती... बचपन से उनकी नकल करता था। सोचा न था कि उनसे मुलाकात होगी। उनके साथ काम करेंगे। पहली बार 1979 में उनसे मिला और उनके साथ कल्याणजी-आनंदजी नाइट शो करने लंदन साथ में गया। फिर तो जब कभी मिलता था, तब मेरे सिर पर हाथ रखकर दुआएं देते थे। मैं कोई स्कूल नहीं गया, महमूद और किशोर कुमार को देख-देखकर सीखा।
खैर, जब मिलना हुआ, तब मेरे घर पर पूछते हुए आते थे। बोलते थे- जॉनी तू क्या कर रहा है? मैं मिलने आता हूं। मैं बोलता कि आपकी तबीयत ठीक नहीं है। कैसे आओगे? जब मुझ पर दिल्ली में 'जीना इसी का नाम है' प्रोग्राम हुआ, तब उन्हें सांस की तकलीफ थी, फिर भी सिलेंडर लेकर वहां भी आए। यह एक हिस्ट्री है। वे बड़े थे और दिल भी बड़ा था। उनके साथ 'दुश्मन दुनिया का', 'बरसात की रात', 'एक नई पहेली' सहित कई फिल्मों में काम किया। जब सेट पर मिलते थे, सब सिखाते थे।' डेथ के पहले अमेरिका चले गए थे। वहां उनसे मिलने गया। तो मेरे आने से पहले ही मैसेज भेजकर कहा- 'तुझे पैसे की या कोई भी चीज की जरूरत हो बेटे, मुझे याद करना। घबराना मत बेटा, तेरा बाप यहां जिंदा है।' इतना उन्होंने प्यार दिखाया है।
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वे अक्सर कहते थे- जॉनी मैंने जो गलती की, ऐसी गलती बेटा तू ऐसा मत करना। फिल्में कम करो, पर फैमिली को वक्त दो। उनका ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल, मुंबई में हार्ट का ऑपरेशन हुआ, तब उनसे मिलने गया। अस्पताल में मिलने से रोकने लगे, तब वे बोले- नहीं, नहीं... उन्हें बुलाओ। रूम में गए, तब देखा कि वेंटिलेटर पर हैं, फिर भी वे इधर-उधर की बातें बोलकर सभी को हंसा रहे थे। वे हमारे आइडियल हैं। उनका गाना 'हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं...' बिल्कुल सटीक है।
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मेरा नाम जूनियर महमूद है। इस पहचान से मुझे कोई ऐतराज नहीं है। उनका नाम मेरे नाम से जुड़ना मेरी खुशनसीबी है। आठ साल का था, जब महमूद साहब के साथ काम करने का मौका मिला। उस फिल्म का नाम सुहागरात था। मैं भी तब नादान था, मगर एनर्जी से लबरेज रहता था। पहली मुलाकात में उन्हीं की टोन में बातें कर वह रोल हासिल किया था। वे सबको मौका देने में बड़े आगे रहते थे। अमिताभ बच्चन को स्ट्रगल के दिनों में बॉम्बे टू गोवा भी महमूद साहब ने ही दिलवाई थी।
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मुझे भी इंडस्ट्री में स्थापित करने में उनका बड़ा योगदान था। दरअसल उनकी बिटिया के बर्थडे में गुमनाम के गाने 'हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं' पर मैं जमकर नाचा था। उससे पहले सुहागरात फिल्म के लिए मेरे ऑडिशन से तो वे खुश थे ही। उनकी बदौलत मेरी किस्मत का सितारा चमका था। उनके लिए मन में बड़ी इज्जत थी। मुकरी चचा की तरह महमूद साहब को भी रमी पसंद थी। ललिता पवार, सुंदर अंकल के साथ खेलते थे। महमूद साहब बड़े चंचल थे। वे लोगों के साथ हंसी मजाक करते रहते थे। उनको जो जहां मिल जाया करता था, उनसे बात कर लिया करते थे।
(दोनों ने जैसा उमेश कुमार उपाध्याय, अमित कर्ण को बताया)
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