ऋषि कपूर डायरेक्टर करण मल्होत्रा के निर्देशन में साल 2012 में आई फिल्म अग्निपथ में काम कर चुके हैं। दोनों काम के अलावा भी एक दूसरे के बेहद करीब रहे हैं। आज ऋषि कपूर के गुजर जाने पर डायरेक्टर करण मल्होत्रा दैनिक भास्कर की किरण जैन को दिए एक इंटरव्यू में फिल्म के सेट का किस्सा सुनाते हुए अपना दर्द जाहिर किया है। इसके अलावाझूठा कहीं का फिल्म के निर्माता ने भी ऋषि के काम की तारीफ करते हुए भास्कर में उमेश कुमार उपाध्याय से बातचीत की है।
एक बार फिर मैं अकेला हो गया हूं
‘चिंटू अंकल मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त थे। मेरा रिलेशनशिप उनके साथ 'अग्निपथ' से बढ़कर था। मेरे पिता की मौत के बाद, मैंने उनमे ही अपना पिता देखा था। जिस तरह से उन्होंने मुझे संभाला उसे शब्दों में कैसे बयां करूं ? आज जब वो हमें छोड़कर चले गए हैं इस गम को मैं शब्दों में कैसे बयां करूं? एक बार फिर मैं अकेला हो गया हूं'।
उन्हें किसी भी तरह की डायरेक्शन की जरूरत नहीं होती थी
अग्निपथ की शूटिंग के दौरान हर कोई उनकी एनर्जी का दीवाना होता था। सेट पर वो एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपने काम के प्रति पागल थे। उनमे एक अलग ही जूनून नजर आता था। राउफ लाला का किरदार जिस तरह से लिखा गया था उस किरदार में उन्होंने एक अलग ही जान फूंक दी थी। जितना मैं उन्हें समझ पाया हूं वो यही हैं कि उन्हें किसी भी तरह के डायरेक्शन की जरूरत नहीं होती थी। बस उनके हाथ में स्क्रिप्ट थमा दीजिये और कैमरा रोल कर दीजिये, वो अपने किरदार में ढल जाते थे।
वो रोज चिल्लाते थे, रोज हमें डांटते थे
'शूटिंग के दौरान, वो सेट पर चिल्लाते भी खूब थे। लेकिन उनके गुस्से में भी प्यार था। यकीन मानिए वो रोज चिल्लाते थे (हंसते हुए), रोज हमें डांटते थे। चाहे वो डायरेक्टर हो या एक्टर, सेट पर मौजूद सभी लोगों को चैलेंज करते थे अपने काम के लिए। जिस तरह की एनर्जी उनमे होती थी उसे चैलेंज करना थोड़ा मुश्किल भी होता था जिससे वो गुस्सा हो जाते (हंसते हुए ), हालांकि हम सभी समझ गए थे की अगर वो चिल्लाते हैं मतलब वो आपसे प्यार करते हैं। उनका अनुभव उनके गुस्से में नजर आता था जिससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। उनके इस अनुभव ने मुझे एक अच्छा फिल्ममेकर बनने में मदद की।एक डाइरेक्टर होने के नाते 'अग्निपथ' में जैसे मैंने राउफ लाला का किरदार सोचा था उससे कई गुना बढ़कर चिंटू अंकल दे गए'।
'ऋषि कपूर कमिटमेंट के पक्के थे'- अनुज शर्मा, निर्माता
ऋषि कपूर की आखिरी फिल्मों में से एक फिल्म थी झूठा कहीं का। फिल्म के निर्माता अनुज शर्मा ने इंटरव्यू के दौरान बताया,'वह इस उम्र में भी सुबह सेट पर आ जाते थे और रात को घर जाते थे। जब वह सेट पर मौजूद होते थे तब एक एक्टर होते थे। उनमें कहीं कोई अहम बिल्कुल नहीं था। इसकी शूटिंग के दौरान उनको हेल्थ इश्यूज थे। फिर भी सेट पर हुए बहुत एनर्जीटिक रहते थे। वे कमिटमेंट के एकदम पक्के थे। उन्होंने कहा कि आपकी फिल्म की जो डबिंग, पेचवर्क है, वह सब पूरा करके जाऊंगा। उन्हें इलाज के लिए जिस दिन अमेरिका जाना था उस रात तक उन्होंने डबिंग की थी। यह डबिंग प्रकाश झा स्टूडियो में हुई।लेकिन इसके बावजूद 2-3 की डबिंग और पैचवर्क का काम जब बाकी रह गया तब उन्होंने अमेरिका से हमें संदेश भेजा कि अगर आप यहां आ जाते हैं तो बची हुई डबिंग कर हैं।फिर तो दो-तीन दिनों के लिए फिल्म के डायरेक्टर वहां जाकर उनके साथ डबिंग किए'।
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