नीचे जो बातें लिखी हैं वह सब अलोक चटर्जी ने कही हैं। फोन पर। वे मध्यप्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक हैं। अभी भोपाल में हैं। इरफान के तब के दोस्त हैं जब दोनों 1984 से 1987 तक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में साथ पढ़ते थे। फोन किया तो बात के दरमियान कई दफा फफक-फफक कर रो पड़े। बोले- नहीं बोल पाऊंगा, फिर कुछ सांसें लीं और कहा- ये लॉकडाउन नहीं होता तो अभी मैं मुंबई में होता। फिर खामोश हुए और बोलते गए। जैसा उन्होंने कहा...
...हम लोग नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में 1984 से 87 तक साथ में पढ़े। हमने 3 साल हर नाटक में लीड रोल किया। इरफान एक्टिंग को काफी सीरियसली लेते थे। शुरू से ही वे गंभीर और संजीदा अभिनेता थे। कम बोलते थे, दोस्तों में लोकप्रिय थे और हंसाने में माहिर।
एनएसडी में इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि एफटीआईआई (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) में अभी एक्टिंग का कोर्स नहीं है, इसलिए मैं एनएसडी आया हूं, क्योंकि मुझे सिनेमा का एक्टर बनना है। सिनेमा का भी ऐसा एक्टर बनना चाहता हूं कि जिसकी एक्टिंग देखकर उसके पास डायरेक्टर आएं। ये उसका सपना था और जिंदगी में उसने अपने सामने इस मुकाम को हासिल भी किया।
बात तब की है, जब हम लोग एनएसडी में अपने सिलेक्शन की लिस्ट देख रहे थे। वो पीछे खड़ा था। मैंने पूछा कि तुम्हारा किस डॉरमेट्री में है? उसने कहा कि मैं 5 नंबर डॉरमेट्री में हूं। उसने मुझसे पूछा कि क्या तुम मुस्लिम हो? इस पर मैंने उससे पूछा कि तुम बंगाली हो? तो बोला कि नहीं, मैं मुस्लिम हूं। मैंने कहा कि मैं बंगाली हूं। ये हमारा एनएसडी में पहला इंटरेक्शन था।
एनएसडी में तीन साल तो हम साथ रहे ही, उसके बाद भी संपर्क बना रहा। 2005 में जब मैं मुंबई में अनुपम खेर साहब के घर गया तो उससे मिलने भी गया था। तब तक वे बहुत बड़े स्टार बन चुके थे, लेकिन मिले वैसे ही, जैसे एनएसडी के दिनों में हुआ करते थे।
तीन साल पहले वे एक अखबार के कार्यक्रम में भोपाल आए थे, उस वक्त भी मैं उनसे व्यक्तिगत रूप से उनसे जाकर मिला था। उस समय सुरक्षा के लिहाज से उसे 5-6 कमांडो घेरे हुए रहते थे। मैंने पूछा भी कि तेरे से मिलने के लिए क्या कमांडो से मिलना पड़ेगा? तो बोले- ये तेरे लिए थोड़ी हैं।
उसकी सादगी और बेतक्कलुफी का अंदाजा इस बात से लगाइए कि मैंने सिगरेट पी और उसने बीड़ी। हम साथ में चाय पी, बादाम खाए। इससे पहले भी वे 20 साल पहले दूरदर्शन के सीरियल सलमा सुल्तान की शूटिंग के लिए भोपाल आए थे, तब घर आए थे। करीब 10 साल पहले फिल्म मकबूल की शूटिंग भी भोपाल में हुई थी। मकबूल शेक्सपीयर के नाटक मैकबेथ पर बेस्ड है। उसने मुझसेमैकबेथ कीअंग्रेजी कॉपी मांगी थी, जहांनुमा होटल में मैं उसे ये देना गया था।
कह सकते हैं कि मिलने-जुलने का सिलसिला लगातार चलता रहा। मैं उनकी पत्नी (सुतापा सिकदर) को अच्छी तरह जानता हूं और वे भी मेरी पत्नी शोभा को छुटपन से जानते थे, क्योंकि हम दोनों के पत्नियों (तब करीबी दोस्त रहीं) से तकरीबन साथ-साथ ही प्रेम संबंध चल रहे थे। उसका अफेयर स्कूल से ही था। मैं उसका एक तरह से मैसेंजर था। उनकी लव मैरिज का प्रस्ताव लेकर भी मैं ही गया था।
बंगाली होने के कारण उसने मुझसे कहा कि तुम भरोसेमंद आदमी हो, तुम्हीं जाकर बात करो। हालांकि, उसने शादी एनएसडी से निकलने के चार-साल बाद, शायद 1991-92 में की। इसकी वजह शायद मुंबई का स्ट्रगल रहा होगा। उससे पारिवारिक संबंध थे। मैं उनकी मां को भी जानता था। उनके छोटे भाई से मिल चुका हूं।
शुरुआत में मुंबई में स्ट्रगल भी काफी किया। छह घंटे कॉलसेंटर में नौकरी था, बाकी समय में स्टूडियो-निर्देशकों की खाक छानी। पहले सीरियल डिस्कवरी ऑफ इंडिया में ब्रेक मिला। इसके 8 साल बाद टेलीविजन का सबसे पॉपुलर स्टार बना। फिर उसको पहली फिल्म मिली। संभवत: 42 साल की उम्र में वह सिनेमा में आया। और जब आया तो अमिताभ बच्चन से लेकर टॉम हैंक्स जैसे एक्टर के साथ काम किया।
लीड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण और ऐश्वर्या राय के साथ स्क्रीन शेयर किया। वो इन्कंपेरिबल था। किसी के साथ उसकी तुलना नहीं थी। नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी और अनुपम खेर के बाद वो एनएसडी का चौथा आदमी था, जिसने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में अपनी पहचान बनाई। हमारे बैच का था, हमारा यार था (ये कहकर आलोक रो दिए)। लॉकडाउन नहीं होता तो मुंबई जाता।
वो शुरू से नसीरुद्दीन शाह को बहुत मानते थे। उनका मानना था कि फिल्मों में जो रियलिस्टिक एक्टिंग होती है, वो नसीर साहब करते हैं। अच्छे रोल मिलें तो आदमी कामयाब हो सकता है। पान सिंह तोमर में उसका सर्वश्रेष्ठ अभिनय है। उसके कैरेक्टर को वो पी गया था। ही वॉज अ किंग।
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