बॉलीवुड डेस्क. दिवाली पर इंडस्ट्री के स्टार्स भी बिजी शेड्यूल से समय निकालकर अपने अपने तरीकों से त्यौहार मनाने के लिए तैयार हैं। किसी ने घर में पूजा की तैयारी की तो किसी ने काम कैंसिल कर घरवालों के साथ समय बिताने का प्लान बनाया। आपको बताते हैं बॉलीवुड स्टार्स की दिवाली पर तैयारियां।
-
इस बार दिवाली मेरे लिए बेहद खास है। वह इसलिए कि शादी के बाद मेरा परिवार बड़ा हो गया है। पहले हम सिर्फ चार लोग थे, जो दिवाली मनाते थे। मम्मी, पापा, मेरी बहन और मैं। मगर अब हमारे साथ रणवीर का परिवार भी जुड़ गया है। शादी के बाद यह मेरी पहली दिवाली है तो मैं बहुत ज्यादा उत्साहित हूं। हमने घर में छोटी सी पूजा रखी है। असल में क्या है न कि हम सभी को साथ वक्त बिताने का समय नहीं मिलता। दिवाली के बहाने मेरे परिवार को रणवीर के माता-पिता, बहन और परिवार के अन्य लोगों के साथ समय बिताने का मौका मिलेगा।
मुझे बचपन में हर साल की दिवाली याद है। बचपन में बेंगलुरु में हमारे पुराने घर में नीचे बिल्डिंग में हम एक साथ दिवाली मनाते थे। रंगोली सजाते थे और दिये जलाते थे। तब पटाखे भी खूब जलाए जाते थे, क्योंकि तब पर्यावरण को शुद्ध रखने की जागरूकता भी कम थी। तब हम भी फुलझड़ी या छोटे बम जलाया करते थे। बहुत मजा आता था, क्योंकि हमें नए कपड़े, गिफ्ट्स और स्वीट्स का इंतजार रहता था।
-
दिवाली एक ऐसा मौका है, जिस पर मुझे नहीं लगता कि कोई भी काम करना पसंद करता होगा। मैं भी उसी लीग से आती हूं। लिहाजा मैंने अपने काम को इस कदर प्लान किया कि एटलीस्ट दिवाली वाले दिन शूट न करना पड़े। वह करने में मैं सफल रही हूं। मैं दिवाली से एक दिन पहले तक और दिवाली के बाद वाले दिनों में काम कर रही हूं, मगर दिवाली वाले दिन मुझे काम करने की जरूरत नहीं पड़े। फिर भी यह मेरी जिंदगी की पहली ऐसी दीवाली होगी जो टेक्निकली वर्किंग हो गई है।
वह इसलिए कि मुझे इसके इर्द-गिर्द काम तो करना पड़ेगी रहा है वरना स्कूल और कॉलेज के दिनों में तो हमारा वीकेंड से ही दिवाली सेलिब्रेशन शुरू हो जाता था और कोई काम नहीं करना होता था। सिर्फ और सिर्फ दिवाली पर फोकस हम लोग किया करते थे। अपनी लाइटिंग होती थी खुद से रंगोली बनती थी। दिवाली पार्टीज में अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर जाने की एक्साईटमेंट रहती थी। उन सब से पहले घर में दिवाली पूजन को लेकर उत्साह का माहौल रहा करता था। हम लोग शुरू से ही क्रैकर्स को ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे। मैं मानती हूं कि ऐसा कर लोग पॉल्यूशन कम करने से लेकर पर्यावरण की बेहतरी में अपना अहम योगदान दे रहे हैं। मेरा मानना है कि जो लोग भी इनफ्लुएंसर्स हैं उन्हें इस तरह की अपील अपने चाहने वालों से करनी चाहिए। -
इस बार की दिवाली वर्किंग जैसी ही है। दिवाली के तुरंत बाद उजड़ा चमन रिलीज की दहलीज पर है। उससे जुड़े हुए कई प्रमोशन के काम हैं, लेकिन उसके चलते दिवाली के रिवाज में कोई तब्दीली नहीं कर रहा हूं। दोनों के बीच संतुलन साध रहा हूं। हर बार की दिवाली की तरह इस बार भी मैं दोस्तों के घर जाऊंगा। दोस्त मेरे घर आएंगे। दिवाली पार्टी हम जरूर मनाएंगे। मैं अपने मॉम डैड और बहन के साथ लंच या डिनर पर जरूर जाऊंगा ही। इस मौके पर गुरुद्वारे तो जाऊंगा ही और वहां सब की बेहतरी और खुशहाली की कामना करूंगा।
मेरी सबसे यादगार बचपन वाली दिवाली अलग तरीके से याद है। एक बार की बात है,जब मेरी एक फैमिली फ्रेंड ने अपने हाथ में ही पटाखे फोड़ लिए थे। हम सब बदहवास से हो गए थे। मैं दौड़ता हांफता हुआ घर पहुंचा वहां कमरे में बरनोल ढूंढी, फिर वह अपने हाथों से अपनी फैमिली फ्रेंड के जले हुए हाथों पर मरहम लगाया। बाकी बच्चों की तरह बचपन में हम लोगों को भी पटाखे फोड़ने में बड़ा आनंद आता था। हम दोस्तों के बीच कौन ज्यादा पटाखे फोड़ते हैं, उसकी कंपीटीशन होता था। पूरी तरह से घर और कहीं और भी जश्न का माहौल रहता है था। मॉम डैड से गिफ्ट और पैसे भी मिला करते थे। उस तरह से दिवाली हम लोग सेलिब्रेट करते थे। पर हां यह भी सच है कि हम सब गुरुद्वारे और मंदिर हर हाल में जाया करते थे। वह रिवाज आज भी कायम है।
-
मेरे लिए दिवाली बहुत खास है, क्योंकि मैं फैमिली के साथ रहती हूं। मेरी नानी अंडरप्रिविलेज्ड चिल्ड्रन के साथ काम करती थी। एक्चुअली जो पटाखे बनाते थे और उनके हाथ जल जाते थे। हमें बहुत छोटे से सिखाया गया है कि पटाखे मत फोड़ो। इसे बच्चे बनाते हैं और बच्चों को ही यह तकलीफें होती हैं। दीपावली पर पटाखे फोड़ने को लेकर यही कहूंगी कि सोच-समझकर पटाखे फोड़िए, क्योंकि बहुत सारे जानवर डर जाते हैं। हमारे बच्चों को पटाखे फोड़ने नहीं, स्कूल जाने चाहिए, उन्हें पढ़ाई करनी चाहिए। पटाखे बनाने के लिए चाइल्ड लेबर से काम लिया जाता है, ऐसे में यह सब न हो, तभी अच्छा है। मेरी नानी का अभी भी स्कूल और ऑर्गेनाइजेशन है- सेफ ऑफ चिल्ड्रन इंडिया, जिसका मम्मी देखभाल करती हैं और आगे चलकर मैं इसकी देखभाल करूंगी। इसके तहत फंड रेजिंग होती है। रेड लाइट एरिया में वीमन रेस्क्यू कर उन्हें बचाते हैं। उन्हें सिखाते-पढ़ाते हैं। चाइल्ड एज्युकेशन देते हैं। मैं बचपन से इनमें जुड़ी हुई हूं।
-
दिवाली पर तो मुझे बचपन से लेकर अब तक घर की साफ सफाई ही याद है। वह भी दिवाली जैसे मौके के लिए एक बड़े अभियान से कम नहीं रहे हैं। बाकी दिनों में भी मां हम बच्चों पर ही घर की साफ सफाई को लेकर तैनात रहती थी। आज भी उस रस्म में कोई तब्दीली नहीं आई है। मैं दिल्ली से हूं, वहां ऐसे मौकों पर ताश खेलने का भी रिवाज रहा है। वह सब तो मैं नहीं करती। मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ टाइम वक्त बिताना पसंद करती हूं। बजाय इसके कि ताश खेलना और बाकी चीजें करना। हर बार की तरह इस बार भी मैं दिल्ली में दिवाली के मौके पर हूं। वहीं अपनों के साथ मैं दिवाली का जश्न मना रही हूं। इसके बावजूद कि मैं शकुंतला देवी शूट कर रही हूं। शुक्रगुजार हूं कि मेकर्स ने मुझे एक दिन की छुट्टी नसीब की। उसी में मैं ने टिकट बुक की और घर के लिए निकल पड़ी।
-
दिवाली अंधकार पर रोशनी की विजय का त्यौहार है मेरे ख्याल से इसे इस तरह मनाना चाहिए कि यह सही मायनों में सार्थक साबित हो। हमारी जिंदगी में अंधकार कई तरह के हैं, सबसे बड़ा अंधकार अज्ञानता का है। वह जिंदगियों को दिशाहीन कर देता है। खासकर उन जिंदगियों को जिनके पास संसाधन नहीं हैं और जो हाशिए पर जीने को मजबूर हैं। तो क्यों ना इस दिवाली पर फोन जिंदगियों को ज्ञान की रोशनी हम लोग दें। मेरी सभी से अपील है कि जरूरतमंद लोगों को ऐसी दिवाली की सौगात दे जो उनकी जिंदगी का अंधियारा दूर करें। किताबों से स्कूल यूनिफार्म से कॉलेज की फीस से हम उनकी जिंदगी का अंधकार दूर कर सकते हैं। यही सही मायनों में दिवाली का सेलिब्रेशन होगा।
-
मेरा मानना है कि हर दिवाली कुछ न कुछ सिखा जाती है। दो साल पहले ‘बरेली की बर्फी’ की शूट कर रहा था। अक्सर मैं दिवाली घर परिवार के साथ ही मनाता हूं। उस बार वैसा नहीं हो पा रहा था। वह इसलिए कि हम लखनऊ में शूट कर रहे थे। दिवाली के लिए पूरे क्रू को सिर्फ एक दिन की छु्ट्टी मिल पाई थी। जहां हम शूट कर रहे थे। वहां से चंडीगढ़ की कनेक्टिविटी बड़ी पूअर थी। लखनऊ से दिल्ली और वहां से चंडीगढ़ जाना पड़ता था। जब तक मैं जाता, तब तक छुट्टी पूरी हो जाती। ऐसे में लखनऊ में ही होटल स्टाफ के साथ हम लोगों ने दिवाली मनाई। तब डायरेक्टर अश्विनी अय्यर तिवारी भी वहीं थीं। उनकी फैमिली वहां आई थीं। वहीं उन्हीं लोगों के साथ मैंने दिवाली सेलिब्रेट की थी। उस दिन महसूस हुआ था कि परिवार कितना जरूरी है। बचपन से आज तक हम मम्मी के साथ लक्ष्मी पूजा पर साथ बैठते रहे हैं। उनके हाथों से प्रसाद मिलता था। वह सब उस दिन हमने मिस किया था। परिवार का महत्व सिखाती है दिवाली।
वैसे यह भी सुनने को मिलता रहा है कि त्यौहारों पर घर न जाने की कंडीशन दो सूरतों में आती है। एक या तो आप स्ट्रग्ल कर रहे होते हैं या फिर दूसरा तब, जब आप पीक पर होते हो। पहली कंडीशन में आप के पास पैसे नहीं होते। दूसरी में वह होता है, मगर वक्त नहीं होता। ये हरेक की अपनी दुनिया होती है। पर दोनों कंडीशन सिखाती हैं कि जिंदगी में परिवार का कितना महत्व होता है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2BKPTbB
No comments:
Post a Comment