Thursday, October 24, 2019

मर्दवादी सोच पर सटीक चोट करती है फिल्म, भूमि और तापसी ने की दमदार एक्टिंग

बॉलीवुड डेस्क. बागपत की शूटर दादियों चंद्रो और प्रकाशी तोमर की बेमिसाल उपलब्धियों पर बेस्ड तुषार हीरानंदानी की यह फिल्म कई मायनों में दिलों को छूती है। फिल्म मर्दवादी रवैये पर चोट भी है। सभी का प्रदर्शन बेहतरीन है।

  1. बागपत के जौहरी गांव जैसे इलाके भारत में ढेर सारे हैं। आज भी कमोबेश वहां के मर्दों का काम हुक्का गुड़गुड़ाना और घर की बहू-बेटियों पर हुक्म चलाना है। औरतों का काम खेती-बाड़ी, चूल्हा-चौका और बच्चे पैदा करने तक ही सीमित है। विपरीत परिस्थितियों में भी शूटर दादियां कैसे न सिर्फ अपना, बल्कि अपने घर की बेटियों शेफाली और सीमा तोमर का भी नाम कैसे रौशन करती हैं, कहानी उस बारे में है। वन लाइनर लेवल पर शूटर दादियों की कहानी बड़ी रोचक और प्रेरक है। दर्शकों को बांधे रखने में राइटर जोड़ी पूरी तरह सफल रही है। दादियों के प्रोस्थेटिक मेकअप और स्पेशल इफेक्ट्स में भी बुनियादी कमी झलकती है। हरियाणवी टोन का डोज भी जरा ज्यादा लगा है। मगर शूटर दादियों के रोल में भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू अपनी अदाकारी से उन कमियों को नजरअंदाज करने पर मजबूर करती हैं।

  2. भूमि ने चंद्रो तोमर की बॉडी लैंग्वेज से लेकर उनके टोन को जिस खूबी से आत्मसात किया है, उससे उनकी अदाकारी की रेंज जाहिर होती है। घनघोर मर्दवादी रवैये वाले बागपत के सरपंच रतन सिंह की बेरहमी को प्रकाश झा बखूबी स्क्रीन पर ला पाए हैं। घर की औरतों के कुछ भी प्रगतिवादी काम करने पर बार-बार 'ये तो होना ही था' वाला तकियाकलाम जंचा है। रोचक बात यह है कि यही तकियाकलाम उनकी फिल्म 'गंगाजल' में अखिलेंद्र मिश्रा का कैरेक्टर भी बार-बार बोलता है। शूटर दादियों के कोच डॉक्टर यशपाल के रोल में विनीत कुमार सिंह की ईमानदारी इंस्पायर करती है। बाकी सारे को स्टार्स का काम भी सराहनीय है। फिल्म के कैमरावर्क और कॉस्ट्यूम की बात करें तो वह परफेक्ट है। जौहरी गांव और आसपास के इलाकों की खूबसूरती भी फिल्म में एक किरदार की तरह लगते हैं। युवा गीतकार और संगीतकार जोड़ी राजशेखर और विशाल मिश्रा ने बेहतरीन म्यूजिक दिया है। एक अरसे बाद आशा भोंसले की आवाज भी उन्होंने सुनवाई है।



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      With great acting technique, Bhoomi and Taapsee strikes on the orthodox thinking


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