Friday, October 18, 2019

सैफ अली खान की दमदार अदाकारी के बावजूद जी का जंजाल है फिल्म

रेटिंग 1.5/5
स्टारकास्ट सैफ अली खान, मानव विज, जोया हुसैन, दीपक डोबरियाल
निर्देशक नवदीप सिंह
निर्माता

आनंद एल राय, सुनील लुल्ला

म्यूजिक समायरा कोप्पिकर, बेनेडिक्ट टेलर, नरेन्द्र चंदावरकर
जॉनर एपिक एक्शन ड्रामा
अवधि 155 मिनट

बॉलीवुड डेस्क.सैफ अली खान उन अभिनेताओं में से एक हैं, जिनके टैलेंट के साथ मेकर्स न्याय नहीं कर पा रहे हैं। दो साल पहले रंगून से शुरू हुआ वह सिलसिला कालाकांडी और बाजार होते हुए कल रिलीज हुई लाल कप्तान के साथ बदस्तूर जारी है। वह भी तब, जब तीनों के मेकर्स नामी नाम रहे हैं। लाल कप्तान के डायरेक्टर नवदीप सिंह हैं, जो इससे पहले 'मनोरमा सिक्स फीट अंडर’ और 'एनएनच 10’ जैसी क्रिटिकली एक्लेम फिल्में दे चुके हैं। लाल कप्तान के तौर पर पहली बार होगा, जब नवदीप अपने क्राफ्ट के लिए तारीफ हासिल न कर पाएं। संजीदा क्रिएटिव लोगों के मामलों में भी कई बार ऐसा हो जाता है। मिसाल के तौर पर फरहान अख्तर के संदर्भ में 'रॉक ऑन 2’ के टाइम पर सिमिलर चीज हुई थी।

  1. 'लाल कप्तान’ 17 वीं सदी में बुंदेलखंड, बक्सर, अवध वगैरह में सेट है। तब मुगलिया सल्तनत ढह रही थी। अंग्रेजों के साथ साथ तब मराठे भी उत्तर भारत में अपना प्रभुत्व जमाने में लगे थे। नायक नागा साधु है। लोग उसे गोसाईं (सैफ अली खान) से संबोधित करते हैं। उसकी आंखों के सामने उसके राजा (नीरज काबी) का खून हो जाता है। उसके लिए राजा के ही सिपहसलार रहमत खान (मानव विज) की दगाबाजी कसूरवार है। अब गोसाईं को रहमत खान की तलाश है, जो अगले 20 सालों तक बांदा, बुंदेलखंड और तब के यूपी के विभिन्न इलाकों में चलती रहती है। यह काम आसान नहीं है। गोसाईं के दुश्मन सिर्फ ताकतवर रहमत खान की फौज ही नहीं, बल्कि अंग्रेज भी हैं। इस काम में हालांकि रहमत खान के यहां काम करने वाली विधवा (जोया हुसैन) औरत भी गोसाईं की मददगार बनती है।

  2. लाल कप्तान बतौर प्लॉट कागज पर दमदार लगती है। 17 वीं सदी के भारत के किले, नागा साधू, अंग्रेजों की टुकड़ी, और तब के सामाजिक ताने-बाने काफी थे कि एक दिलचस्प फिल्म दर्शकों को भेंट कर सके। पर घटनाक्रमों की कछुआ चाल रफ्तार ने फिल्म का बेड़ा गर्क कर दिया। अनुराग कश्यप और इम्तियाज अली की चंद कमजोर फिल्मों में जो परेशानी दिखती रही है, वह यहां नवदीप सिंह के साथ भी दिखी। यह सच है कि अगर उनके किरदार क्रूर हैं तो उन्हें जस का तस वे दिखाते हैं। नवदीप ने यहां मगर हिंसा की अतिरंजना कर दी है। गोसाईं, अंग्रेज, रहमत खान जिस बेरहमी से अपने दुश्मनों का सफाया करता है, उसके विजुअल्स बड़े डिसटर्बिंग हैं। साक्षात महसूस होता है कि मौत की मंडी में लोग पहुंचे हुए हैं। गोसाईं को लगातार ढूंढते रहने वाले ट्रैकर (दीपक डोबरियाल) और लाल परी (विभा रानी) वगैरह के तौर पर कुछेक किरदार रोचक हैं।

  3. परफॉर्मेंस के लिहाज से यह सैफ अली खान और मानव विज की बेहतरीन पेशकश है। दोनों ने एक दूसरे को कॉम्पलिमेंट किया है। उन्हें असरदार बनाने में कॉस्ट्यूम से लेकर स्क्रीन प्रेजेंस ने भी अहम रोल प्ले किया है। बुंदेलखंड की बंजर जमीन और वहां की आबो-हवा में घुली मौत फिल्म के टेक्सचर, टोन को और गाढ़ा करते हैं। सब कुछ सही है, मगर पटकथा और संवाद स्तरहीन हैं। किरदारों को बिल्ट अप करने में इतना ज्यादा वक्त लिया गया है कि उकताहट सी होने लगती है। फिल्म एंगेजिंग तो कतई नहीं है। पूरी फिल्म में बस गोसाईं का बदला ही अकेला छाया रह जाता है। सब कुछ जी का जंजाल सा बन गया है।



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      Movie Review Laal Kaptaan


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