बॉलीवुड डेस्क (अमित कर्ण). बॉलीवुड पर लगातार भाई-भतीजावाद फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। लोग सवाल उठाते हैं कि स्टार किड्स को आसानी से काम कैसे मिल जाता है? लेकिन हकीकत पूरी तरह ऐसी नहीं है। अपने जमाने के मशहूर डायरेक्टर विजय आनंद के बेटे और दिवंगत सुपरस्टार देव आनंद के भतीजे वैभव आनंद को पूरे 14 साल का स्ट्रगल करने के बाद पहला ब्रेक मिला है। वे एकता कपूर के वेब शो 'द वर्डिक्ट: नानावटी वर्सेस स्टेट' में नजर आ रहे हैं, जिसकी स्ट्रीमिंग 30 सितंबर को अल्ट बालाजी पर शुरू हो चुकी है। इस वेब शो के लिए वैभव को मेहनताने के तौर पर प्रतिदिन 18 हजार रुपए मिले।
100 से ज्यादा फिल्मों के लिए ऑडिशन दिए
14 साल तक वैभव ने 100 से ज्यादा फिल्मों के लिए ऑडिशन दिए। रवि चोपड़ा और सूरज बड़जात्या के लिए असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर भी काम किया। कुछ थ्रिलर फिल्मों की कहानी भी लिखीं, जिन्हें वे डायरेक्ट करना चाहते थे। लेकिन फाइनेंसर्स ने उन पर भरोसा नहीं दिखाया। हालांकि, अच्छी बात यह है कि सालों तक रिजेक्शन झेलने के बावजूद वैभव ने अपने अंदर किसी तरह की कड़वाहट नहीं आने दी।
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एकता कपूर के वेब शो से छोटी सी शुरूआत हुई है। उम्मीद करता हूं कि आगे अच्छे मौके मिलेंगे। हमेशा से इसी फील्ड में काम करना चाहता था। क्योंकि मैं जिस खानदान से आता हूं, वहां के लोगों की रग-रग में एक्टिंग बसी हुई है। लेकिन मैंने अपने खानदान की पहुंच का बेवजह इस्तेमाल कभी नहीं किया।
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पिताजी, चाचाजी हमेशा उनके औरा से बाहर निकलने की कोशिश की सलाह देते थे। लिहाजा पहले अमेरिका जाकर इस विधा की पढ़ाई की। वापस आया तो पिताजी एक फिल्म से मुझे लॉन्च करने की तैयारी में थे, लेकिन उनका इंतकाल हो गया। उनका जाना मेरे लिए बहुत बड़ा झटका था। अगले दो साल तक मैं उस सदमे से उबर नहीं पाया। फिर जैसे-तैसे खुद को ट्रैक पर लाने की कोशिश की।
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चाचाजी (देव आनंद) ने कई फिल्म मेकर्स को मेरा नाम सुझाया था, लेकिन मैंने अपने दम पर अपना मुकाम बनाने की ठानी। रवि चोपड़ा और सूरज बड़जात्या को असिस्ट किया। सूरज जी ने मुझे लेकर एक फिल्म भी प्लान की , लेकिन वह बन नहीं पाई।
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पांच साल पहले सलमान (खान) भाई के बैनर तले भी फिल्म 'हैप्पी डेज' में मौका मिला था, लेकिन वह नहीं बन पाई। शायद डायरेक्टर को कुछ दिक्कत थी। हालांकि, भाई ने मुझसे वादा किया था कि वे आगे अपने बैनर तले मुझे काम करने का मौका जरूर देंगे। अगर सलमान भाई के बैनर तले वह फिल्म बनती तो उससे डैनी साहब के बेटे रिनजिंग डेनजोंगपा का भी डेब्यू होता। फिल्म का एक शेड्यूल शूट भी हुआ था। वह एक साउथ इंडियन फिल्म की हिंदी रीमेक थी। उसी नाम से बन रही थी।
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आशुतोष गोवारिकर साहब ने मुझे अपनी फिल्म 'खेले हम जी जान से' में फ्रीडम फाइटर का रोल ऑफर किया था, जिसे करने से मैंने मना कर दिया था। क्योंकि मेरा लुक उस किरदार से मैच नहीं कर रहा था। 'मोहनजो दाड़ो' में भी उन्होंने मौका देने की कोशिश की थी। श्रीराम राघवन भी मुझे बड़ा मौका देने वाले थे। इन सबके अलावा तीन साल पहले दो न्यूकमर प्रोड्यूसर के साथ भी फिल्में शुरू होने वाली थीं, जिनके नाम फाइनल नहीं हो पाए थे। उन्हीं में से एक प्रोड्यूसर ने इस साल रिलीज हुई 'कबीर सिंह' बनाई।
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रहा सवाल डायरेक्शन में हाथ आजमाने का तो उस वक्त मेरी उम्र और अनुभव की कमी आड़े आती रही। फाइनेंसर्स को लगता था कि इसके तो पिता और बैनर दोनों नहीं रहे, यह क्या फिल्म संभाल पाएगा। मैंने '3 इडियट्स' के लिए भी ऑडिशन दिया था। क्योंकि पहले प्रोड्यूसर विधु विनोद चोपड़ा ने कहा था कि वे फिल्म न्यूकमर्स के साथ बनाने वाले हैं। लेकिन बाद में उन्होंने इसमें इंडस्ट्री में स्थापित हो चुके एक्टर्स को ही लिया।
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खैर, इन सब रिजेक्शंस के बावजूद मैंने किसी के प्रति अपने मन में कड़वाहट नहीं आने दी। खुद को भी गलत रास्तों पर नहीं जाने दिया। नशे से भी दूर रहा। मेरा फोकस महाभारत के अर्जुन की तरह सिर्फ काम पर था। आज भी नियमित रूप से अपने क्राफ्ट पर काम करता रहता हूं। एक्टिंग स्किल को निखारता रहता हूं। नियमित रूप से जिम जाता हूं।
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